Thursday, June 14, 2018

A right goal makes life successful

Factors important to be noted for a successful life:
If you've right aim in right direction with proper planning in your life, if you're leading a purposeful life, then even if sometimes any weakness or distractions comes, attachments or indulgence comes, crisis or shortage comes, atleast a right aim is before you. 
  • Determination : When a person lacks determination, a stage of ignorance creeps into him. He becomes insensible and inactive.  
  • Reverence: When a person lacks reverence, he disrespects himself. Insolence and contempt bring idleness and stagnancy in him.
  • Pessimism : Idleness and stagnancy engulf him in pessimism. Pessimism further produce cowardice, escapism and desertion. A long stage of escapism causes self-destructive attitudes and it makes the person irresponsible and thoughtless.
  • Right goal, right direction and right planning : A person must have a right goal to live this life. People who don't have a right aim in right direction and a significant planning, they will not have proper conditions in life. They will face plight, abjection in their life.

From the excerpts of Swami Avdheshanand Giriji Maharaj.
Translated by Pranati Saikia




Sunday, June 3, 2018

Two important things for a healthy and happy life

Repression(Daman), Restrain(Nigrah) and Punishment(Tadan) alongwith nurturing of mind is equally important for a healthy life. Without these, people become interest-oriented and develop certain habits revolving around their interests. They started living their life only for certain tastes. Our mind often acts like a small child without any knowledge of propriety. We ought to reprimand it just like we chide and refrain a child to make it aware about right and wrong.  




Two things are very important in human life, these are repression (daman) and restrain (nigrah). People who don’t have these two things are always inclined towards interests. As a result, they develop certain habits and get prone to them. Such people live their life only for taste. In repression and restrain, we ought to censure, rebuke or resist ourselves just like we chide a small child for bad habits.

There are two likeable words for parents, nourishment and preservation (lalan-palan) but with these two words, there includes another word that is punishment (tadan) - to make aware and concious. While nurturing, if we don’t punish the child to make him concious and aware, the child will get spoiled. In the same way, it is needed to restrict our mind. Do we ever repress and restrain ourselves? Do we ever tell ourselves not to stride the respectable limits?

We must make ourselves concious and aware about the propriety, nobility and the code of conduct. Sometimes our mind behaves like a child, we ought to rebuke it, make it concious about the righteousness. There is a simple truth of life, who doesn’t have “Dharma”, he couldn’t have restrain in life.



From the excerpts of Swami Avdheshanand Giriji Maharaj.
Translated by Pranati Saikia.

दो महत्वपूर्ण बातें सार्थक जीवन के लिए

जीवन में जिनके पास दो चीज़ें नहीं होती वो हमेशा रुचियों के पास खड़े मिलते हैं; ये दो चीज़े हैं दमन और निग्रह। जिनके जीवन में से शम और दम निकल गया है, जो निग्रह नहीं कर पाते हैं, वो जीवन मात्र रुचिओं के लिए जीते हैं। हम्हें ये बड़ा अच्छा लगता है.... निग्रह में डांटना पड़ता है जैसे छोटे बच्चे को डांटते है। कभी दमन किया है अपना ? कभी डाटा डपटा है अपने को ? 

लालन, पालन यह दो शब्द बड़े अच्छे लगते हैं लोगों को लेकिन तीसरा शब्द अच्छा नहीं लगता वो है ताड़न। एक बच्चे को कभी ताड़ा भी जाता है। लालन पालन करते करते अगर आपने ताडन नहीं किया है, कभी बताया नहीं यह नहीं करोगे आप। आपका मन भी तो कभी बच्चा बन जाता है। कभी अपने मन को बताया ये नहीं करोगे, ये नहीं कर सकते आप।  तो लालन पालन तो करते रहते हैं अपने मन का, ताडन नहीं करते, निग्रह नहीं करते, दमन नहीं करते। एक सीधी सीधी बात है जिसके पास धर्म नहीं है वो अंकुश नहीं रख सकता। 
दो चीज़े जिनके जीवन में नहीं होती वो रुचियों के पास रहते हैं; वो दो चीज़े हैं दमन और निग्रह। कभी दमन किया है अपना?
कभी डाटा डपटा है अपने को? कभी निग्रह किया है ? अगर दमन, निग्रह आपके पास नहीं है तो इसका अर्थ है आप रुचियों के पास हैं, मात्र टेस्ट के लिए जीवन जी रहे हैं। हम्हें ये बड़ा अच्छा लगता है.... 
जिनके जीवन में से शम दम निकल गया है, जो निग्रह नहीं कर पाते वो रुचियों के पास खड़े पाते हैं। निग्रह में डांटना पड़ता है जैसे छोटे बच्चे को डांटते है। दो शब्द बोहोत अच्छे लगते हैं लेकिन तीसरा नहीं अच्छा लगता; एक है लालन, दूसरा पालन और तीसरा है ताडन। एक बच्चे को कभी ताड़ा भी जाता है। लालन पालन करते करते अगर आपने ताडन नहीं किया है, कभी बताया नहीं यह नहीं करोगे आप.... उसी तरह क्या आपने कभी अपने मन को बताया ये नहीं करोगे, ये नहीं कर सकते आप। तो कितनी मात्रा में ताडन किया है अपना? कितनी मात्रा में निग्रह किया है अपना ? कितनी मात्रा में दमन किया है आपने अपना? कितनी मात्रा में वर्जनाओं का सम्मान किया है आपने? कितनी मात्राओं में आपने अपने को रोका है की यह बस, मर्यादाएं हैं, इसके आगे हम नहीं लांघ सकते। 
तो लालन पालन तो करते रहते हैं अपने मन का, ताडन नहीं करते, निग्रह नहीं करते, दमन नहीं करते। और एक सीधी सीधी बात है जिसके पास धर्म नहीं है वो अंकुश नहीं रख सकता। ये अंकुश एक ऐसा शब्द है जो हाथी को नियंत्रित करता है; हाथी को नियंत्रित करने के लिए उसके मर्मस्थल पर मारा जाएगा। हाथी के मस्तक पर एक ऐसी जगह होती है जहां वो बार बार ठोकर मारता रहता है, हाथी को दाएं बाएं ले जाने के लिए हाथी के मस्तक पर पैर मारा जाता है। ये महावत को ही पता होता है कौनसी जगह मारना होता है। पर वो लगभग एड़ी जितनी जगह होती है जहां दाएं-बाएं ऊपर-नीचे चोट मारी जाती है। और अगर तीन चार धमक लगादि है तो इसका मतलब है बैठ जा, बैठ जा। हाथी बैठ जायेगा। आपका मन का हाथी कब बैठेगा कभी चोट मारी एड़ी से? अगर आपका मन ऊठ की तरह है तो कभी नकेल डाली उसपे ?और मान लो मन घोड़ा हो तो कभी आपने उसपे वल्गाएं डाली हैं उसके मुँह में लगाम डाली हैं क्यूंकि घोरा लगाम से ठीक होता है ?  कभी आपका मन हाथी बन गया, तो कैसे ठीक करना है, आपका मन घोड़ा बन गया तो कैसे ठीक करना है, और मन ऊठ बन गया तो कैसे ठीक करना है और अगर मन बच्चा बन गया है तो कैसे ठीक करना है ?

स्वामी अवधेशानन्द गिरिजी महाराज के प्रवचन से...



By Pranati Saikia

Teachings from Kathopanishad - Part II

Nachiketa asked Bhagwan YAMA, " Tell me that knowledge or karma by which we will be able to go to Heaven." He asked this for the ...