जीवन में जिनके पास दो चीज़ें नहीं होती वो हमेशा रुचियों के पास खड़े मिलते हैं; ये दो चीज़े हैं दमन और निग्रह। जिनके जीवन में से शम और दम निकल गया है, जो निग्रह नहीं कर पाते हैं, वो जीवन मात्र रुचिओं के लिए जीते हैं। हम्हें ये बड़ा अच्छा लगता है.... निग्रह में डांटना पड़ता है जैसे छोटे बच्चे को डांटते है। कभी दमन किया है अपना ? कभी डाटा डपटा है अपने को ?
लालन, पालन यह दो शब्द बड़े अच्छे लगते हैं लोगों को लेकिन तीसरा शब्द अच्छा नहीं लगता वो है ताड़न। एक बच्चे को कभी ताड़ा भी जाता है। लालन पालन करते करते अगर आपने ताडन नहीं किया है, कभी बताया नहीं यह नहीं करोगे आप। आपका मन भी तो कभी बच्चा बन जाता है। कभी अपने मन को बताया ये नहीं करोगे, ये नहीं कर सकते आप। तो लालन पालन तो करते रहते हैं अपने मन का, ताडन नहीं करते, निग्रह नहीं करते, दमन नहीं करते। एक सीधी सीधी बात है जिसके पास धर्म नहीं है वो अंकुश नहीं रख सकता।
दो चीज़े जिनके जीवन में नहीं होती वो रुचियों के पास रहते हैं; वो दो चीज़े हैं दमन और निग्रह। कभी दमन किया है अपना?
कभी डाटा डपटा है अपने को? कभी निग्रह किया है ? अगर दमन, निग्रह आपके पास नहीं है तो इसका अर्थ है आप रुचियों के पास हैं, मात्र टेस्ट के लिए जीवन जी रहे हैं। हम्हें ये बड़ा अच्छा लगता है....
जिनके जीवन में से शम दम निकल गया है, जो निग्रह नहीं कर पाते वो रुचियों के पास खड़े पाते हैं। निग्रह में डांटना पड़ता है जैसे छोटे बच्चे को डांटते है। दो शब्द बोहोत अच्छे लगते हैं लेकिन तीसरा नहीं अच्छा लगता; एक है लालन, दूसरा पालन और तीसरा है ताडन। एक बच्चे को कभी ताड़ा भी जाता है। लालन पालन करते करते अगर आपने ताडन नहीं किया है, कभी बताया नहीं यह नहीं करोगे आप.... उसी तरह क्या आपने कभी अपने मन को बताया ये नहीं करोगे, ये नहीं कर सकते आप। तो कितनी मात्रा में ताडन किया है अपना? कितनी मात्रा में निग्रह किया है अपना ? कितनी मात्रा में दमन किया है आपने अपना? कितनी मात्रा में वर्जनाओं का सम्मान किया है आपने? कितनी मात्राओं में आपने अपने को रोका है की यह बस, मर्यादाएं हैं, इसके आगे हम नहीं लांघ सकते।
तो लालन पालन तो करते रहते हैं अपने मन का, ताडन नहीं करते, निग्रह नहीं करते, दमन नहीं करते। और एक सीधी सीधी बात है जिसके पास धर्म नहीं है वो अंकुश नहीं रख सकता। ये अंकुश एक ऐसा शब्द है जो हाथी को नियंत्रित करता है; हाथी को नियंत्रित करने के लिए उसके मर्मस्थल पर मारा जाएगा। हाथी के मस्तक पर एक ऐसी जगह होती है जहां वो बार बार ठोकर मारता रहता है, हाथी को दाएं बाएं ले जाने के लिए हाथी के मस्तक पर पैर मारा जाता है। ये महावत को ही पता होता है कौनसी जगह मारना होता है। पर वो लगभग एड़ी जितनी जगह होती है जहां दाएं-बाएं ऊपर-नीचे चोट मारी जाती है। और अगर तीन चार धमक लगादि है तो इसका मतलब है बैठ जा, बैठ जा। हाथी बैठ जायेगा। आपका मन का हाथी कब बैठेगा कभी चोट मारी एड़ी से? अगर आपका मन ऊठ की तरह है तो कभी नकेल डाली उसपे ?और मान लो मन घोड़ा हो तो कभी आपने उसपे वल्गाएं डाली हैं उसके मुँह में लगाम डाली हैं क्यूंकि घोरा लगाम से ठीक होता है ? कभी आपका मन हाथी बन गया, तो कैसे ठीक करना है, आपका मन घोड़ा बन गया तो कैसे ठीक करना है, और मन ऊठ बन गया तो कैसे ठीक करना है और अगर मन बच्चा बन गया है तो कैसे ठीक करना है ?
स्वामी अवधेशानन्द गिरिजी महाराज के प्रवचन से...
By Pranati Saikia
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